A Simple Key For BEKU4D Unveiled
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दुनिया-ए-सदाक़त में तेरा नाम रहेगा सिद्दीक़ तेरे नाम से इस्लाम रहेगा सालार-ए-सहाबा, वो पहला ख़लीफ़ा सरकार का प्यारा, सिद्दीक़ हमारा हर सुन्नी का ना'रा, सिद्दीक़ हमारा हर नस्ल तेरे काम की तजदीद करेगी जब तक रहेगी दुनिया तेरा नाम रहेगा सालार-ए-सहाबा, वो पहला ख़लीफ़ा सरकार का प्यारा, सिद्दीक़ हमारा हर सुन्नी का ना'रा, सिद्दीक़ हमारा मुस्तफ़ा का हम-सफ़र ! अबू-बकर अबू-बकर ! गली-गली नगर-नगर ! अबू-बकर अबू-बकर ! लुटाया जिस ने अपना घर ! अबू-बकर अबू-बकर ! नहीं है जिस को कोई डर ! अबू-बकर अबू-बकर ! है चर्...
On observing his talent in poetry, Maulana Haali advised him to become a disciple of Dagh Dehlvi in 1891. Soon, he became among the best disciples, imbibing the variety of his teacher. Bekhud's poetry is stuffed with linguistic maneuvers and amongst the disciples of Dagh, he holds a distinction of constructing colloquialisms that are worthy of appreciation. His compositions incorporate Guftar-e-Bekhud and Shahsavar-e-Bekhud. He breathed his final during the year 1955, in Delhi.
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बेदम ! मेरी क़िस्मत में चक्कर हैं इसी दर के
ऐ ज़हरा के बाबा ! सुनें इल्तिजा मदीना बुला लीजिए कहीं मर न जाए तुम्हारा गदा मदीना बुला लीजिए सताती है मुझ को, रुलाती है मुझ को ये दुनिया बहुत आज़माती है मुझ को हूँ दुनिया की बातों से टूटा हुआ मदीना बुला लीजिए बड़ी बेकसी है, बड़ी बे-क़रारी न कट जाए, आक़ा ! यूँही 'उम्र सारी कहाँ ज़िंदगानी का कुछ है पता मदीना बुला लीजिए ये एहसास है मुझ को, मैं हूँ कमीना हुज़ूर ! आप चाहें तो आऊँ मदीना गुनाहों के दलदल में मैं हूँ फँसा मदीना बुला लीजिए मैं देखूँ वो रौज़ा, मैं देखूँ वो जाली बुला लीजे मुझ को भी, सरकार-ए-'आली !
मा'लूम नहीं, बेदम ! मैं कौन हूँ और क्या हूँ
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बे-दम मेरी क़िस्मत में, सजदे हैं इसी दर के
wo jiske liye mahfil-e-kaunain saji hai wo jiske liye mahfil-e-kaunain saji hai firdaus-e-bari jiske wasile se bani hai wo haashmii makki madani ul 'arabii hai wo mera nabi mera nabi mera nabi hai ahmad hai mohammad hai wah KHatm-e-rasuul hai maKHduum o murabbii hai wahi vaalii-e-kul hai us par hi nazar saare zamane ki lagi hai wo mera nabi mera nabi mera nabi hai clean-shams o wad-duHa chehra-e-anwar ki jalak hai wal-layl saza gesuu-e-hazrat ki latak hai 'aalam ko ziya uske wasile se mili hai wo mera nabi mera nabi mera nabi hai allah ka farman "alam-nashrah la-ka sadrak" mansuub hai "wa-raf'aana la-ka zikrak" jis zaat ka quraan me.
बयाँ हो किस ज़बाँ से मर्तबा सिद्दीक़-ए-अकबर का है यार-ए-ग़ार महबूब-ए-ख़ुदा सिद्दीक़-ए-अकबर का इलाही ! रहम फ़रमा ख़ादिम-ए-सिद्दीक़-ए-अकबर हूँ तेरी रहमत के सदक़े, वास्ता सिद्दीक़-ए-अकबर का रुसुल और अंबिया के बा'द जो अफ़ज़ल हो 'आलम से ये 'आलम में है किस का मर्तबा ? सिद्दीक़-ए-अकबर का गदा सिद्दीक़-ए-अकबर का ख़ुदा से फ़ज़्ल पाता है ख़ुदा के फ़ज़्ल से मैं हूँ गदा सिद्दीक़-ए-अकबर का हुए फ़ारूक़-ओ-'उस्मान-ओ-'अली जब दाख़िल-ए-बै'अत बना फ़ख़्र-ए-सलासिल सिलसिला सिद्दीक़-ए-अकबर का नबी का और ख़ुदा का मद्ह-गो सिद्दीक़-ए-अकबर है नबी सिद्दीक़-ए-अकबर का, ख़ुदा सिद्दीक़-ए-अकबर का 'अली हैं उस के दुश्मन और वो दुश्मन 'अली का है जो दुश्मन 'अक़्ल का, दुश्मन हुआ सिद्दीक़-ए-अकबर का लुटाया राह-ए-हक़ में घर कई बार इस मोहब्बत से कि लुट लुट कर, हसन !
दर्शन का तो दर्शन हो, नज़राने का नज़राना